जिस जनरल थिमैया का नाम लेकर PM मोदी ने पंडित नेहरू पर साधा निशाना, पढ़े उनकी Story - 48by7news

48by7news

48by7news, All India News available on this site, Current News, Latest news, everyday news, Amarujala, Fox, NYT, Zee News, NDTV News,

Breaking

Home Top Ad

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Thursday 3 May 2018

जिस जनरल थिमैया का नाम लेकर PM मोदी ने पंडित नेहरू पर साधा निशाना, पढ़े उनकी Story

[ad_1]

पीएम नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक के कलबुर्गी में तीन मई को अपनी चुनावी रैली में कांग्रेस पर हमलावर रुख अपनाते हुए कहा कि यह धरती वीरों की भूमि है लेकिन कांग्रेस सेना के बहादुर जवानों के त्‍याग का सम्‍मान नहीं करती. जब हमारे जवानों ने सर्जिकल स्‍ट्राइक किया तो कांग्रेस ने उस पर सवाल उठाए. वे मुझसे सर्जिकल स्‍ट्राइक का सबूत मांगते रहे. सर्जिकल स्‍ट्राइक के बाद कांग्रेस के एक वरिष्‍ठ नेता ने हमारे मौजूदा आर्मी चीफ को 'गुंडा' कहा. इतिहास गवाह है कि इस धरती के वीर फील्‍ड मार्शल करियप्‍पा और जनरल थिमैया के साथ कांग्रेस सरकार ने कैसा बर्ताव किया? जनरल थिमैया को तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्‍णा मेनन ने अपमानित किया. इस संदर्भ में इतिहास के पन्‍नों को उलटकर जनरल थिमैया की कहानी पर आइए डालते हैं एक नजर:


जनरल कोडनडेरा सुब्‍बैया थिमैया
1906 में कर्नाटक में जन्‍मे थिमैया उसी कोडनडेरा समुदाय से ताल्‍लुक रखते थे जिससे देश के पहले कमांडर-इन-चीफ जनरल करियप्‍पा संबंधित थे. जनरल केएस थिमैया 1957-61 तक आर्मी चीफ रहे. द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान इंफ्रेंट्री ब्रिगेड संभालने वाले एकमात्र भारतीय सैन्‍य अधिकारी थे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के 15 महीने पहले वह रिटायर हुए. उसके बाद वह साइप्रस में संयुक्‍त राष्‍ट्र शांति रक्षक दल के कमांडर नियुक्‍त हुए. इसी ड्यूटी के दौरान 18 दिसंबर, 1965 को उनका निधन हो गया.


narendra modi
पीएम नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक के कलबुर्गी में चुनावी रैली के दौरान कहा कि सर्जिकल स्‍ट्राइक के बाद कांग्रेस के एक वरिष्‍ठ नेता ने हमारे मौजूदा आर्मी चीफ को 'गुंडा' कहा.


विवाद
शिव कुमार वर्मा की किताब 1962 द वार दैट वाज नाट (1962 The War That Wasn't) में जनरल थिमैया के 1959 में इस्‍तीफा देने की घटना का विस्‍तार से जिक्र किया गया है. उसमें बताया गया है कि चीन के मोर्चे पर भारत की नीतियों से शीर्ष स्‍तर पर मतांतर था. उसी कड़ी में रक्षा मंत्री कृष्‍णा मेनन और थिमैया की मीटिंग हुई. वहां पर मेनन ने जनरल से कहा कि वह अपनी बात प्रधानमंत्री से सीधे कहने के बजाय पहले उनसे साझा कर मामले को इसी स्‍तर पर सुलझाएं. इसके साथ ही यह कहते हुए मेनन ने मीटिंग खत्‍म कर दी कि यदि मसले सार्वजनिक हुए तो उसके राजनीतिक प्रभाव की कीमत चुकानी होगी. इसके तत्‍काल बाद थिमैया ने इस्‍तीफा दे दिया.


प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने तत्‍काल उनको अपने पास बुलाया और लंबी बातचीत के बाद देश हित में आसन्‍न चीनी खतरे को देखते हुए इस्‍तीफा वापस लेने का आग्रह किया. नतीजतन जनरल थिमैया ने इस्‍तीफा वापस ले लिया. किताब के मुताबिक थिमैया के जाने के बाद उनके इस्‍तीफे की खबर को जानबूझकर मीडिया के समक्ष लीक कर दिया गया, जबकि इस्‍तीफे में लिखी बातों को छुपा लिया गया. उसका नतीजा यह हुआ कि अगले दिन सभी अखबारों की सुर्खियां जनरल थिमैया के इस्‍तीफ से पटी हुई थीं.


उसके दो दिन बाद दो सितंबर, 1959 को पंडित नेहरू ने संसद में इस मसले पर बयान देते हुए कहा कि उनके आग्रह को मानते हुए आर्मी चीफ ने इस्‍तीफा वापस ले लिया है. उन्‍होंने मिलिट्री पर सिविलयन अथॉरिटी की सर्वोच्‍चता बताते हुए कहा कि दरअसल अलग मिजाज के व्‍यक्तित्‍वों के कारण ऐसी परिस्थिति उत्‍पन्‍न हुई. इसके साथ ही उन्‍होंने जनरल थिमैया की आलोचना करते हुए कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा संकट के बीच वह पद छोड़ना चाहते हैं. जनरल थिमैया के त्‍यागपत्र के मजमून को आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.




[ad_2]

Source link

No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here